”विश्व एक परिवार है” के युग में मुद्रा और सीमा शुल्क युद्ध
“वसुधैव कुटुंबकम” (विश्व एक परिवार है) का सिद्धांत वैश्विक एकता और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि मुद्रा हेरफेर (Currency Manipulation) और सीमा शुल्क युद्ध (Customs Tariff Wars) इस आदर्श के विपरीत जाते हैं। देश छोटे आर्थिक लाभ के लिए दीर्घकालिक वैश्विक संतुलन को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
मुद्रा युद्ध: व्यापार का मौन हथियार
जब देश जानबूझकर अपनी मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation) करते हैं, तो उनके निर्यात सस्ते और आयात महंगे हो जाते हैं। इससे घरेलू उद्योगों को तो लाभ मिलता है, लेकिन वैश्विक व्यापार संतुलन बिगड़ जाता है। चीन और अमेरिका पर मुद्रा हेरफेर के आरोप लग चुके हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक अस्थिरता बढ़ी।
सीमा शुल्क युद्ध: संरक्षणवाद बनाम मुक्त व्यापार
देश घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए आयात शुल्क बढ़ाते हैं, लेकिन इससे प्रतिशोधी शुल्क (Retaliatory Tariffs) लगते हैं, जिससे मूल्य वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला बाधित और व्यापार धीमा पड़ जाता है। अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध इसका स्पष्ट उदाहरण है, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया।
विरोधाभास: “एक विश्व” बनाम आर्थिक स्वार्थ
वैश्विक सहयोग का समर्थन करने वाले देश अर्थिक राष्ट्रवाद अपनाकर मुद्रा और व्यापार युद्धों में शामिल हो रहे हैं। इससे आर्थिक विश्वास कमजोर होता है, प्रौद्योगिकी साझेदारी सीमित होती है, और वैश्विक बाजार में अस्थिरता आती है।
आगे का रास्ता: सहयोग आधारित आर्थिक नीतियाँ
✔ निष्पक्ष व्यापार समझौते लागू किए जाएं।
✔ मुद्रा नीतियों में पारदर्शिता लाई जाए ताकि कृत्रिम अवमूल्यन न हो।
✔ आर्थिक कूटनीति को बढ़ावा दिया जाए, जिससे आपसी विकास संभव हो।
अगर देश वास्तव में “वसुधैव कुटुंबकम” में विश्वास रखते हैं, तो उन्हें आर्थिक युद्ध के बजाय सहयोग की नीति अपनानी होगी, जिससे वैश्विक समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित हो सके।